देश से पूरी तरह से फांसी की सजा खत्‍म करने पर काम कर रहे हैं एपी सिंह, नहीं चाहते शबनम को हो फांसी

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निर्भया मामले में दोषियों की तरफ से पैरवी कर चुके हैं एपी सिंह

निर्भया मामले में दोषियों की पैरवी करने वाले वकील एपी सिंह नहीं चाहते हैं कि अमरोह हत्‍याकांड में शबनम को फांसी की सजा दी जाए। इसके पीछे उनकी अपनी दलील है। वो चाहते हैं के देश के जेल फांसी घर न बन

नई दिल्ली। निर्भया मामले में दोषियों की तरफ से पैरवी कर चुके सुप्रीम कोर्ट के वरिष्‍ठ वकील एपी सिंह ने अपने एक बयान में शबनम को फांसी न दिए जाने की वकालत की है। उनका कहना है कि वो भारत से फांसी की सजा को खत्‍म करने के लिए काम कर रहे हैं। इसके लिए वो अब तक जिन लोगों को फांसी की सजा दी जा चुकी हैं उनके आंकड़े जुटा रहे हैं। साथ ही उनके परिजनों से भी बात कर रहे हैं। उनका ये भी कहना है कि ये काफी लंबी प्रक्रिया है जिसमें कुछ समय और लग सकता है। उनके मुताबिक अमेरिका भी सजा-ए-मौत की सजा को खत्‍म करने की तरफ बढ़ता दिखाई दे रहा है। हालांकि वहां पर हाल ही में एक महिला को जघनतम अपराध का दोषी पाए जाने के बाद जहरीला इंजेक्‍शन देकर कोर्ट के आदेश की तामील की गई है।

इस बीच उत्तर प्रदेश की रामपुर जेल में बंद शबनम की फांसी फिलहाल टलती दिखाई दे रही है। इसकी वजह राज्‍यपाल के पास दायर एक दया याचिका है जो शबनम के बेटे की तरफ से दायर की गई है। शबनम पर अपने ही परिवार के सात लोगों की निम्रम हत्‍या करने का आरोप साबित हुआ था। इसके बाद निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक उसको मिली फांसी की सजा को सही पाया गया। राष्‍ट्रपति ने भी उसकी दया याचिका को ठुकराकर उसकी सजा पर अंतिम मुहर लगा दी। अब उसकी फांसी की सजा को खत्‍मकर उसको उम्रकैद में बदलने की मांग उठ रही है। इसके लिए उसके मासूम बच्‍चे की दुहाई दी जा रही है। ऐसा चाहने वालों में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्‍ठ वकील एपी सिंह भी हैं, जो निर्भया मामले में दोषियों की फांसी की सजा टालने के लिए अंतिम समय तक कोशिश करते दिखाई दिए थे। 14 अप्रैल 2008 की इस घटना ने पूरे प्रदेश को हिला कर रख दिया था।

एपी सिंह का कहना है कि वो न सिर्फ फांसी को भारत से खत्‍म करने के पक्ष में हैं बल्कि चूंकि शबनम एक महिला है और उसका एक बेटा भी है जिसका कोई अपराध नहीं है, इसलिए भी वो चाहते हैं कि उसको फांसी न हो। हालांकि वो ये भी मानते हैं कि शबनम ने जघनतम अपराध किया है। उनका मानना है कि भारतीय अदालतें जेलों को सुधार गृह बनाने का प्रयास करें न कि उन्‍हें फांसी घर में तब्‍दील कर दें। दैनिक जाग‍रण से बातचीत के दौरान उन्‍होंने कहा कि वर्षों से देश में फांसी की सजा दी जा रही है इसके बाद भी देश में जघन्‍य अपराधों का सिलसिला थमा नहीं है। इसका अर्थ है कि हमें बदलाव की दरकार है। उन्‍होंने कहा कि दुनिया के सौ के करीब देशों में फांसी की सजा का प्रावधान खत्‍म कर दिया गया है। भारत को भी इस तरफ आगे बढ़ना चाहिए। अपराध के लिए फांसी की सजा दिया जाना कोई सही विकल्‍प नहीं है। अदालतों को चाहिए कि वो अपराध करने वालों सुधार के प्रति प्रेरित करें। ये पूछे जाने पर कि क्‍या वो इस मामले से जुड़ेंगे, तो उन्‍होंने कहा कि वो इस मामले में कानूनी सलाह मुहैया करवा रहे हैं।

एपी सिंह का कहना है कि शबनम का मासूम बच्‍चा, जिसका पालन पोषण उसके दोस्‍त ने किया है, उसको भविष्‍य में अपनी मां का साया मिल सके तो इससे उसके मन में कानून के प्रति सम्‍मान बढ़ेगा। यदि कोर्ट और हमारा समाज मिलकर उसको एक बेहतर इंसान बना पाया तो ये ज्‍यादा अच्‍छा होगा। उनका कहना है कि उसको आजीवन जेल में ही रखा जाए तो गलत नहीं होगा। उनकी निगाह में सजा का मकसद सिर्फ सजा देना ही नहीं होना चाहिए बल्कि सुधारात्‍मक होना चाहिए। भारतीय संविधान का अनुच्‍छेद 72 ये अधिकार देता है कि किसी भी सजायाफ्ता व्‍यक्ति को जीने का अधिकार देता है, लिहाजा उसको जिंदा रहना चाहिए। उनका ये भी कहन है कि जो दया याचिका राज्‍यपाल के समक्ष लगाई गई है उसको सकारात्‍मक रवैये से देखना चाहिए और उसकी फांसी की सजा को रोक देना चाहिए।

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