निवेशकों की मदद करता है सेबी का नया रिस्क मीटर, फंड के वास्तविक पोर्टफोलियो पर होता है आधारि

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ओरिजिनल या मूल रिस्क मीटर हर एक फंड को पांच रिस्क लेवल लो लो टु मॉडरेट मॉडरेट मॉडरेटली हाई और हाई पर रेटिंग करता था। हालांकि यह वास्तव में फंड रिस्क मीटर नहीं बल्कि फंड कैटेगरी रिस्क मीटर था। इसका म्यूचुअल फंड के पोर्टफोलियो से कोई सीधा संबंध नहीं था।

नई दिल्ली। म्यूचुअल फंड के आधिकारिक रिस्क-ओ-मीटर के नए संस्करण ने काम शुरू कर दिया है। इसके तहत नए रिस्क लेवल घोषित किए गए हैं और बहुत से निवेशकों को लगता है कि नए सिस्टम में उनके फंड का रिस्क लेवल बढ़ गया है। हालांकि, कुछ को यह भी लगता है कि उनके लिए रिस्क लेवल घट गया है। ऐसे में निवेशकों को यह बात समझनी चाहिए कि रिस्क मीटर क्या है।

ओरिजिनल या मूल रिस्क मीटर हर एक फंड को पांच रिस्क लेवल लो, लो टु मॉडरेट, मॉडरेट, मॉडरेटली हाई और हाई पर रेटिंग करता था। हालांकि, यह वास्तव में फंड रिस्क मीटर नहीं, बल्कि फंड कैटेगरी रिस्क मीटर था। इसका म्यूचुअल फंड के पोर्टफोलियो से कोई सीधा संबंध नहीं था।

फंड के मापदंड के लिहाज से देखें तो रिस्क लेवल में काफी अंतर हो सकता था, और ऐसा था भी। हाल में सामने आए डेट फंड संकट से पता चलता है कि रिस्क कहीं से भी आ सकता है। इसमें लिक्विडिटी की किल्लत भी शामिल है। सबसे प्रमुख बात यह है कि पुराना रिस्क मीटर पूरी तरह से स्थिर था। कैटेगरी गाइडलाइंस कभी नहीं बदली। ऐसे में रिस्क लेवल भी कभी नहीं बदला। कुल मिलाकर यह सिस्टम निवेशक को यह बताता था कि उसके लिए सबसे अच्छी कैटेगरी कौन सी है, यह नहीं कि सबसे अच्छा फंड कौन सा है।

नया रिस्क मीटर हर फंड के वास्तविक पोर्टफोलियो पर आधारित है। इससे यह जानने में मदद मिलती है कि किसी फंड में निवेश किया जाए या नहीं। इससे आपको यह जानने में भी मदद मिलती है कि फंड को भुना लिया जाए या निवेश बनाए रखा जाए। हालांकि, इस बदलाव ने कुछ निवेशकों को असहज भी बना दिया है।

कुछ दिनों पहले वैल्यू रिसर्च स्टार रेटिंग के बारे में सवाल-जवाब के ऑनलाइन सत्र में एक निवेशक ने शिकायत की। उसका कहना था कि उसने एक फंड में इसलिए निवेश किया था, क्योंकि फंड को फाइव स्टार रेटिंग दी गई थी। लेकिन बाद में फंड की रेटिंग घटा दी गई। मैंने निवेशक को स्पष्ट किया कि अगर हम रेटिंग को कभी न बदलें तो रेटिंग का कोई मतलब नहीं रह जात

नए रिस्क मीटर सिस्टम में रिस्क का मतलब क्या है। डेट फंड में जवाब बहुत सरल है। डेट फंड एक बहुत ही संकरी रेंज में चढ़ता है या नीचे जाता है। इसमें अप्रयाशित तौर पर लिक्विडिटी की समस्या पैदा होने की आशंका बहुत कम होती है। रिस्क मीटर के लिए सेबी का अल्गॉरिदम इन सभी बातों का ध्यान रखता है। हो सकता है भविष्य में कुछ छोटे-मोटे बदलाव हों, लेकिन रिस्क मीटर सिस्टम और निवेशक की डेट फंड को लेकर रिस्क का मतलब काफी हद तक समान हैं

इक्विटी फंड का मामला अलग है। अगर आपकी रिस्क की परिभाषा इस बात पर आधारित है कि आपको फंड शायद उतना रिटर्न न दे पाए जितना आप चाहते हैं, तो यह उससे काफी अलग बात है जो सेबी का अल्गॉरिदम आपको बताएगा। कुल मिलाकर इक्विटी इन्वेस्टिंग ज्यादा जटिल है और चीजों को गहराई से समझने की जरूरत होती है। कुछ भी हो, एक समझदार निवेशक इस बात को अच्छी तरह से समझना चाहेगा कि कोई भी रेटिंग या रिस्क सिस्टम वास्तव में करता क्या है।

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