मथुरा-वृंदावन में 40 दिन पहले से ही हो जाती है होली की शुरुआत, आज मनाई जा रही है लट्ठमार होली

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RGA news

हवा में उड़ते गुलाल में झूमते लोग

इस बार होली का त्यौहार 29 मार्च को है। वैसे तो होली पूरे देश में उत्साह के साथ धूमधाम से मनाई जाती है लेकिन उत्तर प्रदेश के मथुरा में इस त्यौहार की खास मान्यताएं हैं। जिसकी शुरुआत 40 दिन पहले से ही हो जाती 

मथुरा-वृंदावन की होली देश के साथ-साथ विदेशों में भी काफी प्रसिद्ध है। यहां होली मनाने और यहां की होली का जश्न देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। इसकी वजह है यहां कि लट्ठमार होली। यह हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को खेली जाती है। इस साल यह आज यानि 23 मार्च को पड़ रही है। माना जाता है कि इसी दिन श्री कृष्ण राधा रानी के गांव होली खेलने गए थे।

ऐसे होती है इस होली की शुरुआत

अष्टमी के दिन नंदगांव व बरसाने का एक-एक व्यक्ति गांव जाकर होली खेलने का निमंत्रण देता है। नवमी के दिन जोरदार तरीके से होली की हुडदंग शुरू होता है। नंदगांव के पुरुष नाचते-गाते छह किलोमीटर दूर बरसाने पहुंचते हैं। इनका पहला पड़ाव पीली पोखर पर होता है।

इसके बाद सभी राधारानी मंदिर के दर्शन करने के बाद लट्ठमार होली खेलने के लिए रंगीली गली चौक में जमा होते हैं। यहां गीत गाकर, गुलाल उड़ाकर एक दूसरे के साथ ठिठोली करते हैं। इसके बाद वहां की महिलाएं नंदगांव के पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं और वे ढाल लेकर अपना बचाव करते हैं। होली खेलने वाले पुरुषों को होरियारे और महिलाओं को हुरियारिनें कहा जाता है। साथ ही इस दिन कृष्ण के गांव नंदगांव के पुरुष बरसाने में स्थित राधा के मंदिर पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, लेकिन बरसाने की महिलाएं एकजुट होकर उन्हें लट्ठ से खदेड़ने का प्रयास करती हैं।

इस दौरान पुरुषों को किसी भी प्रकार के प्रतिरोध की आज्ञा नहीं होती। वे महिलाओं पर केवल गुलाल छिड़ककर उन्हें चकमा देकर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है और उन्हें महिलाओं के कपड़ें पहनाकर श्रृंगार इत्यादि करके सामूहिक रूप से नचाया जाता है। अगले दिन यानि दशमी को बरसाने के होरियारे नंदगांव की हुरियारिनों के साथ होली खेलने जाते हैं।

सिर्फ यहीं खेली जाती है यह होली

लट्ठमार होली उत्तर प्रदेश के राज्य मथुरा के शहर बरसाना और नंदगांव में खेली जाती है। पूरे भारत में एकमात्र ये ऐसी रस्म है, जो केवल बरसाना में ही होती है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत 16वीं शताब्दी में हुई थी। इसमें होली के दिन बरसाने की महिलाएं नंदगांव के पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं और पुरुष इससे बचते हैं। 

श्रीकृष्ण के समय से खेली जा रही है लट्ठमार होल

मान्यता है कि लट्ठमार होली भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के समय से खेली जा रही है। दरअसल, उस समय भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ होली खेलने के लिए बरसाना पहुंच जाया करते थे। उसके बाद वे राधा और उनकी सखियों के साथ ठिठोली करते थे। उनकी हरकतों से रुष्ट होकर राधारानी और उनकी सखियां कृष्ण और उनके सखाओं पर डंडे बरसाया करती थीं। उनके वार से बचने के लिए कृष्ण और उनके सखा ढालों और लाठी का प्रयोग करते थे। धीरे-धीरे उनका ये प्रेमपूर्वक होली खेलने का तरीका परंपरा बन गया। तब से आज तक बरसाना और वृंदावन के बीच लट्ठमार होली खेली जाती है। पहले वृंदावन के लोग कमर पर फेंटा लगाकर बरसना की महिलाओं के साथ होली खेलने पहुंचते हैं, उसके अलगे दिन बरसाना के लोग वृंदावन की महिलाओं के साथ होली खेलने जाते हैं

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