जीएम फसलों का फील्ड ट्रायल न होने से सीड इंडस्ट्री में निराशा, आधुनिक टेक्नोलॉजी के उपयोग से वंचित हो रहा घरेलू कृषि क्षेत्र

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जीएम फसलों का फील्ड ट्रायल P C : Pexels

जीईएसी के पास पांच-छह कंपनियों के फील्ड ट्रायल के आवेदन पड़े हैं। इनमें सूखा रोधी धान बिना यूरिया की खेती वाली फसलें सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर फसलें और सोयाबीन-सरसों जैसी तिलहनी फसलें शामिल हैं। इससे जहां देश खाद्य सुरक्षा में सशक्त होगा वहीं किसानों की माली हालत भी सुधरेगी

नई दिल्ली। जेनेटिक मॉडिफाइड (जीएम) फसलों के फील्ड ट्रायल की अनुमति न मिलने से विज्ञानियों व सीड इंडस्ट्री में निराशा है। आधुनिक खेती वाली इस टेक्नोलॉजी से खाद्य सुरक्षा और मजबूत हो सकती है। विभिन्न फसलों की आयात निर्भरता को कम करने अथवा खत्म करने में भी मदद मिल सकती है। इसके बावजूद राजनीतिक दबाव में वैज्ञानिक व तकनीकी कमेटियों की सिफारिश के बावजूद सरकार फील्ड ट्रायल को हरी झंडी नहीं दिखा रही है। प्राइवेट कंपनियां ही नहीं सरकारी अनुसंधान संस्थानों से विकसित जीएम फसलें भी फील्ड ट्रायल की बाट जोह रही हैं।

राज्यसभा में पूछे एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने फील्ड ट्रायल की अनुमति से पहले राज्यों की सहमति लेना जरूरी बताया है। इसके सहारे केंद्र सरकार ने यह दायित्व राज्यों को कंधे पर डाल दिया है। दरअसल, फील्ड ट्रायल का पहला फैसला जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) करती है। उसके बाद राज्यों से सहमति लेकर वहां ट्रायल किया जा सकता है। लेकिन अब राज्यों की सहमति से पहले जीईएसी कोई सिफारिश नहीं करेगी। मुश्किल यह है कि राज्य सरकारें बिना किसी वैज्ञानिक संस्था की ठोस सिफारिश के अनुमति देने से मना कर सकती हैं।

फेडरेशन आफ सीड इंडस्ट्री आफ इंडिया और अलायंस फॉर एग्री इनोवेशन के महानिदेशक श्रीराम कौडिन्य ने कहा, 'सरकार के इस रुख से कृषि क्षेत्र में आधुनिक टेक्नोलॉजी का रास्ता बंद हो जाएगा। इस क्षेत्र में भारी जोखिम के मद्देजनर निवेश की इच्छुक कंपनियों का बोरिया बिस्तर बंध सकता है। बायोटेक्नोलॉजी में अध्ययन करने वाले छात्रों, अनुसंधान व विकास में लगे विज्ञानियों का भविष्य खराब हो सकता है।' उनका कहना है कि जीएम टेक्नोलॉजी की चूक का गंभीर खामियाजा घरेलू कृषि व किसानों को भुगतना पड़ सकता है। इस टेक्नोलॉजी से हम प्राकृतिक संसाधनों की बचत कर सकते हैं और फर्टिलाइजर और पेस्टीसाइड्स के उपयोग में भी कटौती हो सकती है।

किसानों की आमदनी को दोगुना करने में यह टेक्नोलॉजी वरदान साबित हो सकती है। फेडरेशन आफ सीड इंडस्ट्री के निदेशक शिवेंद्र बजाज ने सरकार के इस कदम पर निराशा जताते हुए कहा कि ट्रांसजेनिक फसलों के क्षेत्र की वैज्ञानिक प्रक्रिया पहले से ही जटिल थी। इसे और कठिन बना दिया गया है। नियामक प्रक्रिया के अनुरूप जीईएसी फील्ड परीक्षण के लिए दिए गए आवेदन के साथ जमा किए गए डाटा की समीक्षा करती है। परीक्षण के बाद वह फील्ड ट्रायल की अनुमति देती है।

कई कंपनियों के हैं आवेदन

जीईएसी के पास पांच-छह कंपनियों के फील्ड ट्रायल के आवेदन पड़े हैं। इनमें सूखा रोधी धान, बिना यूरिया की खेती वाली फसलें, सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर फसलें और सोयाबीन व सरसों जैसे तिलहनी फसलें शामिल हैं। इससे जहां देश खाद्य सुरक्षा में सशक्त होगा, वहीं किसानों की माली हालत भी सुधरेगी। बीटी बैगन के फील्ड ट्रायल के विरोध में भारतीय किसान संघ ने केंद्र समेत छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक और तमिलनाडु की राज्य सरकारों को ज्ञापन सौंपा था, जिसके बाद इसे वहां रोक दिया गया।

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