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RGA news
भारत के आर्थिक सुधार में NBFCs निभा सकती हैं अहम भूमिका, इन पहलुओं पर और जोर देने की दरकारसरकार नॉन रेजिडेंट एंटरप्राइजेज से उठाए गए कर्ज पर ब्याज में कटौती की अनुमति देने पर विचार कर सकती है।
भारत में अगर एनबीएफसी को डेट मोरेटोरियम की स्थिति संभालने और जिम्मेदारी के साथ कर्ज देने में सक्षम बने रहना है तो यह जरूरी है कि उन्हें बैंकों एवं कैपिटल मार्केट से फंड मिलता रहे। हालांकि यह बहुत मुश्किल होता जा रहा हैै
नई दिल्ली, ओंड्रेज क्यूबिक। कोविड-19 के प्रसार से काफी पहले ही बाजार के शोधकर्ताओं ने ग्लोबल इकोनॉमिक आउटपुट में गिरावट का अनुमान जता दिया था। तभी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं समेत ग्लोबल मार्केट के वृहद आर्थिक एवं वित्तीय हालात बिगड़े हुए हैं। यह स्पष्ट दिख रहा है कि कोई भी उभरती अर्थव्यवस्था अपनी स्वाभाविक गति से नहीं बढ़ पा रही है और भारत भी इसका अपवाद नहीं है। भारत सरकार ने पिछले साल 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज का एलान किया था। यह सही दिशा में उठाया गया कदम है, क्योंकि आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की दिशा में इससे आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। इन बहुप्रतीक्षित कदमों से भारतीय अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी और विकास के पांच स्तंभों के साथ फिर से विकास की पटरी पर लौटना संभव होगा। ये पांच स्तंभ हैं, अर्थव्यवस्था, इन्फ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजी आधारित व्यवस्था, वाइब्रेंट डेमोग्राफी और मांग। विशेष तौर पर एनबीएफसी (गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां) के लिए घोषित 45,000 करोड़ रुपये की पार्शियल गारंटी स्कीम 2.0 बड़ा गेम चेंजर साबित हो सकती है।
एनबीएफसी द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली कंज्यूमर फाइनेंस की सुविधाएं अर्थव्यवस्था का अहम घटक हैं:
वैश्विक अर्थव्यवस्था में अचानक आए ठहराव से लाखों लोगों की आजीविका छिन गई है और ऐसे लोगों को शून्य से शुरुआत करनी होगी। उन्हें बेहतर फाइनेंशियल रिजर्व के साथ जीवन को सुचारु तरीके से चलाने में वर्षों या दशकों का समय लग सकता है।
वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम आकार के उद्यम दुनियाभर में कुल कारोबार में करीब 90 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं और 50 प्रतिशत से ज्यादा रोजगार देते हैं। इनमें से बहुत से उद्यम और कर्मचारी औपचारिक बैंकिंग सिस्टम से किसी तरह की फाइनेंस की सुविधा से दूर हैं और उनके सामने शटडाउन के दौरान आई मुश्किलों से पार पाने के लिए पर्याप्त बचत नहीं होने का खतरा है।
भारत में भी लाखों परिवार इस संकट से बाहर आने के लिए सरकार की योजनाओं और कदमों की उम्मीद लगाए बैठे हैं। लॉकडाउन में नरमी के बाद भी यह समझने की बात है कि कई परिवारों के समक्ष नकदी का संकट बना हुआ है। असल में बहुत से परिवारों को अपने कर्जों को पुनर्गठित करने की जरूरत है, क्योंकि वे फिर से नकदी की स्थिति सुधारने के लिए प्रयासरत हैं।
इसलिए एनबीएफसी को ऐसे मौके पर आगे आने और आर्थिक सुधारों की प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी लेने और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की बराबरी में आने की जरूरत है।
लोन की किस्तों में नहीं हो रही चूक
घरों में नकदी प्रवाह के लिए एनबीएफसी ने डेट मोरेटोरियम के विकल्प दिए हैं। यह सेक्टर आगे भी मुश्किल हालात बने रहने तक इन कदमों को जारी रखने के लिए तैयार है। भारत ने मोरेटोरियम की दिशा में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ प्रक्रियाओं को अपनाया है, जिससे कमजोर वित्तीय संस्थानों पर कोई बोझ डाले बिना जरूरतमंद परिवारों को मदद मिली है। वैश्विक स्तर पर परिवारों को मदद देने के नीतिगत कदमों में सरकार की ओर से सब्सिडी, आय के बदले में नकदी देना और कुछ देनदारियों जैसे सरकारी बिल आदि के भुगतान को कम करने जैसे कदम शामिल हैं। महत्वपूर्ण बात है कि कई देशों की सरकारों ने लोगों को लोन की किस्त नहीं चुकाने की अनुमति देने का कदम भी उठाया है। एशिया के अन्य देश भी महामारी के कारण आए आर्थिक संकट के मामले में कमोबेश भारत जैसी ही स्थिति का सामना कर रहे हैं।
थाइलैंड जैसे देश ने अर्थव्यवस्था के सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों को उबारने के लिए 80 अरब डॉलर के पैकेज का एलान किया है, जो उसकी जीडीपी के 16 प्रतिशत के बराबर है। मलेशिया ने भी 59.6 अरब डॉलर के पैकेज का एलान किया है, जो उसकी जीडीपी के 16 प्रतिशत के बराबर है।
अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह बनाने के लिए प्रोत्साहन की व्यवस्था की तत्काल जरूरत है:
वैश्विक स्तर पर हम घटी हुई कैपिटल रिक्वायरमेंट, खतरा उठाने की कम क्षमता और नियामकों की ओर से कंपनियों को अकाउंटिंग एवं रेगुलरेटरी फ्रेमवर्क में दी गई ढील का उपयोग करने की अपील देख रहे हैं। केंद्रीय बैंक बाजार में नकदी डाल रहे हैं। इसके लिए रेपो रेट के स्तर पर और साथ ही साथ बैंकों के लिए लिक्विडिटी कवरेज रेश्यों को कम करने जैसे कदम उठाए जा रहे हैं।
भारत में अगर एनबीएफसी को डेट मोरेटोरियम की स्थिति संभालने और जिम्मेदारी के साथ कर्ज देने में सक्षम बने रहना है तो यह जरूरी है कि उन्हें बैंकों एवं कैपिटल मार्केट से फंड मिलता रहे। हालांकि यह बहुत मुश्किल होता जा रहा है, क्योंकि मौजूद संकट को देखते हुए बैंक और निवेशक दूरी बना रहे हैं।
इस समस्या को दूर करने के लिए वित्त मंत्री का हालिया एलान एनबीएफसी सेक्टर के लिए वरदान बना है। नई नीति के तहत एए रेटिंग वाले और बिना रेटिंग वाले सभी लोन के पात्र होंगे, जिससे एनबीएफसी व अन्य कर्जदाता संस्थानों के लिए फंडिंग प्रेशर कम होगा और फंडिंग के स्रोत विकसित होंगे। इसके अलावा इंवेस्टमेंट ग्रेड डेट पेपर और पूरी सरकारी गारंटी वाले 30,000 करोड़ रुपये की स्पेशल लिक्विडिटी स्कीम भी सेक्टर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह ऐसा कदम है, जिसकी इस सेक्टर को बहुत जरूरत थी। कुल मिलाकर इन कदमों से एनबीएफसी सेक्टर की क्रेडिट उपलब्धता बढ़ेगी, जिससे हाई रिस्क ग्रुप में आने वाले लोगों और उद्यमियों को कर्ज मिलने में आसानी होगी।
सरकार नॉन रेजिडेंट एंटरप्राइजेज से उठाए गए कर्ज पर ब्याज में कटौती की अनुमति देने पर भी विचार कर सकती है। इस कदम से भारतीय एनबीएफसी के लिए अंतरराष्ट्रीय डेट मार्केट में कदम रखना संभव होगा और अर्थव्यवस्था में उपभोग को बढ़ाने के लिए पूल ऑफ फंडिंग बढ़ेगी और उससे जुड़ा रिस्क भारत से बाहर होगा।
निष्कर्ष
निष्कर्ष के तौर पर कह सकते हैं कि कोरोना वायरस महामारी बैंकों और एनबीएफसी के समक्ष लगभग एक सदी की सबसे गंभीर चुनौती है, क्योंकि उन्हें अभी लंबी अवधि तक गिरावट का सामना करना पड़ सकता है। आत्मनिर्भर भारत के लिए मजबूत एनबीएफसी सेक्टर आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभा सकता है। यह सेक्टर केवल ऑटो, कंज्यूमर ड्यूरेबल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स में मांग बढ़ाने में ही मदद नहीं करता है, बल्कि छोटे उद्यमियों व वित्तीय रूप से बैंकिंग से दूर लोगों के लिए कर्ज की उपलब्धता को भी बेहतर करता है। इस सेक्टर को लेकर सरकार के हालिया कदम से क्रेडिट फ्लो को ताकत मिलेगी और बाजार में उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ेगा, जिसकी इसस समय बहुत जरूरत है।