ह‍िंदी पत्रकार‍िता द‍िवस 2021 : मुरादाबाद के क्रांतिकारी सूफी अंबा प्रसाद की कलम से थर्राते से अंग्रेज, यहां पढ़ें रोचक जानकारी

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RGA news

बरेली से एलएलबी की डिग्री लेने के बाद 1889 में निकाला था सितारे हिंद अखबार

मुरादाबाद के क्रांत‍िकारी सूफी अंबा प्रसाद का नाम इ‍त‍िहास में दर्ज है। अंग्रेजी हुकूमत उन्‍हें फांसी पर लटकाने का ख्‍वाब ही बुनती रह गई। उन्‍होंने ब्र‍िट‍िश सरकार के ख‍िलाफ जमकर बगावत की। उन्‍हें देश निकाला की सजा सुनाई गई थी

मुरादाबाद पीतलनगरी के नाम से दुनिया भर में पहचान रखने वाले मुरादाबाद में सूफी अंबा प्रसाद जैसे क्रांतिकारी पत्रकार भी पैदा हुए हैं, जिन्हें हमेशा याद रखा जाएगा। सूफी अंबा प्रसाद की कलम से अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारी थर्राते थे। बरेली से एलएलबी की डिग्री लेने के बाद सूफी अंबा प्रसाद ने 1889 में सितारे हिंद नाम से पहला अखबार निकाला। उन्होंने अपनी कलम के दम पर इस अखबार के माध्यम से अंग्रेजों की नींद हराम कर दी थी। पंजाब में किसानों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ षडयंत्र करने के आरोप में उन्हें देश निकाला की सजा सुनाई गई थी।

क्रांतिकारी पत्रकार सूफी अंबा प्रसाद का जन्म 1858 में मुगलपुरा थाने के कानून गोयान में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। वह अपने सात भाइयों सबसे छोटे थे। जन्म से ही उनका दाहिना हाथ नहीं था। सूफी अंबा प्रसाद का छापाखाना पूरे हिंदुस्तान में मशहूर था। उन्होंने दूसरा अखबार उर्दू साप्ताहिक जाम्यूल इस्लाम निकाला। मुस्लिम समाज को आजादी की जंग से जोड़ने के लिए उन्होंने इस अखबार का सहारा लिया। इसके बाद आनंद बाजार पत्रिका का संपादन करने लगे। वरिष्ठ पत्रकार संतोष कुमार गुप्ता और कशिश वारसी ने बताया कि शहीद अशफाक उल्ला खां को फांसी होने के बाद अंग्रेजों के खौफ से कोई उनकी लाश लेने के लिए नहीं आ रहा था। लखनऊ स्टेशन पर पहुंचकर सूफी अंबा प्रसाद ने ही उनके शव को अंग्रेज अफसरों से रिसीव किया था। वह देश के एक बड़े अखबार के फोटोग्राफर को अपने साथ लेकर गए थे। पंजाब में किसानों के साथ मिलकर आंदोलन चलाए जाने से अंग्रेजों ने खफा होकर उन्हें देश से निकालने के आदेश कर दिए। वह अजित सिंह के साथ देश के एक बड़े अखबार में काम करते थे। उन्हीं के साथ अंग्रेजों की नजरों से दूर ईरान चले गए। वहां इन्होंने आवेहयात अख़बार में संपादन का काम किया। ईरानियों ने उन्हें सूफी की उपाधि दी। लेकिन, ईरान पर भी अंग्रेजों का कब्जा हो जाने के बाद वहां भी उनके जीवन के लिए संकट हो गया। वहां उन्हें अंग्रेज सरकार ने फांसी की सज़ा सुना दी। लेकिन, फांसी की तारीख से पहले ही 21 फरवरी 1915 को उन्होंने खुद अपने प्राण त्याग दिए। वरिष्ठ पत्रकार पारस अमरोही का भी मुरादाबाद से गहरा रिश्ता रहा है। वह लंबे समय तक यहां पत्रकारिता करते रहे। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश सूचना विभाग ने भी 1952 में निकाले गए भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संस्करण में सूफी अंबा प्रसाद का जिक्र किया है। सूफी अंबा प्रसाद का नाम उन भारतीय क्रांतिकारियों में शामिल है, जिन्हें अंग्रेज मौत के घाट उतारने का सपना ही देखते रह गए। मौत के बाद उनका मकबरा ईरान में ही बना है।

आर्य विनय था मुरादाबाद का पहला अखबार

मुरादाबाद से 1885 आर्य विनय नाम का पहला पाक्षिक अखबार निकला था। यह अखबार वैदिक यंत्रालय प्रयागराज से छपकर आता था। आर्य समाज मुरादाबाद तत्वाधान में निकलने वाले इस अखबार का वार्षिक मूल्य दो रुपये था। पंडित रुद्र दत्त शर्मा इस अखबार के संपादक थे। वर्तमान में लखनऊ से प्रकाशित होने वाले आर्य मित्र की नींव भी मुरादाबाद में पड़ी थी। सात साल तक यह अखबार मुरादाबाद से छपता रहा। इसके संपादक मुंशी नारायण प्रसाद थे। 1896 में यह साप्ताहिक अखबार उर्दू में निकला था।। आर्य भास्कर प्रेस से छपता था। बाद में इसे हिंदी में छापा जाने लगा। किसरौल निवासी माहिल सिद्दीकी ने सदा-ए-हक, कांठ की पुलिया सरफराज सिद्दीकी ने दैनिक गरज और मुरादाबाद के पहले मेयर रहे हुमायूं कदीर ने आइने आलम अखबार निकाला। वरिष्ठ पत्रकार उमेश केहरे, पं. देवकी नंदन मिश्र. ललित मोहन भारद्वाज, नर नारायण गोयल, प्रथी राज, शंकर लाल जैन, सुनील छैय्यां, महावीर शर्मा, डा. आरसी श्रोतिय, जयकृष्ण पूर्वी, अशोक कुमार मुरादाबाद की पत्रकारिता में बड़े नाम हैं।

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