संस्कृत के दुर्लभ ग्रंथों का संपादन आवश्यक, ताकि समृद्धि हो सके संस्‍कृत

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RGA न्यूज़

प्रो.रमाकांत पांडेय ने कहा कि आधुनिक विद्वानों को दुर्लभ ग्रंथों का संपादन कर संस्कृत को समृद्ध बनाना चाहिए। संपादन में भाष्य उपकारक तो है परंतु संपादन कार्य भाष्याधृत नहीं होना चाहिए। संपादन करते हुए कवि के स्वारस्य को स्पष्ट करना चाहिए

गोरखपुर, जयपुर परिसर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के प्रो.रमाकांत पांडेय ने कहा कि आधुनिक विद्वानों को दुर्लभ ग्रंथों का संपादन कर संस्कृत को समृद्ध बनाना चाहिए। संपादन में भाष्य उपकारक तो है परंतु संपादन कार्य भाष्याधृत नहीं होना चाहिए। संपादन करते हुए कवि के स्वारस्य को स्पष्ट करना चाहिए।

प्रो.रमाकांत पांडेय दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग तथा मानव संसाधन विकास केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में सात दिवसीय आनलाइन शोध प्रविधि कार्यशाला के छठे दिन के प्रथम सत्र को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे। लघु कथा साहित्य पर प्रकाश डालते हुए प्रो.पांडेय ने बताया कि संस्कृत की प्रथम लघु कथा नारायण शास्त्री खिस्त्रे ने 'गृद्धदृष्टि लिखी, जो अमरवाणी पत्रिका में प्रकाशित हुई। प्रथम सत्र का संचालन डा.सूर्यकांत त्रिपाठी एवं धन्यवाद ज्ञापन डा.स्मिता द्विवेदी ने किया। द्वितीय सत्र में बतौर वक्ता अंग्रेजी विभाग के प्रो.गौरहरि बेहरा ने शोध प्रविधि में बौद्धिक क्षमता तथा शोध-पद्धतियों पर विस्तार से प्रकाश डाला। प्रो.बेहरा ने बताया कि 1919 के बाद भाषा व साहित्य में शोध प्रविधि शब्द की चरितार्थता दृष्टिगोचर होती है। आज शोध प्रविधि का व्यापक स्वरूप हम सबके समक्ष है। सत्र का संचालन डा.मृणालिनी एवं धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष प्रो.मुरली मनोहर पाठक ने किया। इस अवसर पर विभाग के शिक्षक एवं छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।

शोध के लिए महत्वपूर्ण है प्राथमिक व द्वितीयक स्रोत का तरीका

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने कहा कि शोध के लिए प्राथमिक व द्वितीयक स्रोत का तरीका अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस पर शोधार्थियों को ध्यान देना चाहिए।

प्रो.राजेश सिंह दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के शिक्षाशास्त्र विभाग में सात दिवसीय कार्यशाला के समापन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। जेजेटी विश्वविद्यालय राजस्थान के डायरेक्टर डिपार्टमेंट आफ एजुकेशन प्रो.भुवन चंद्र महापात्रा ने कहा कि शोध करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने शोध कार्य के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला तथा शोध समस्या के चयन में प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोत के प्रयोग के तरीकों पर विस्तार से चर्चा की। कार्यक्रम संयोजक प्रो.सुषमा पांडेय ने आभार ज्ञापित किया। इस दौरान डा.दुर्गेश पाल तथा डा.अनुपम ङ्क्षसह समेत शिक्षक व शोध छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।

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