विधानसभा चुनाव नतीजे: सहयोगी दलों की दबाव की राजनीति से भाजपा हुई सतर्क

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RGA News दिल्ली

पांच राज्यों के चुनाव नतीजों में भाजपा की हार के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में उसके सहयोगी दलों ने दबाव की राजनीति शुरू कर दी है। इससे भाजपा नेता भावी स्थिति को लेकर सतर्क हो गए हैं। लोक जनशक्ति पार्टी संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष व सांसद चिराग पासवान के ट्वीट के बाद यह मामला गरमाने लगा है। गौरतलब है कि पीडीपी के साथ गठबंधन टूटने और तेलुगु देशम व रालोसपा के एनडीए से बाहर जाने के बाद भाजपा की समस्याएं लगातार बढ़ी हैं।

भाजपा के लिए बिहार की कठिन डगर
बिहार की राजनीति बीते लोकसभा चुनाव के बाद से ही भाजपा के लिए आसान नहीं रही है। विधानसभा चुनाव के बाद ही जीतनराम मांझी ने साथ छोड़ दिया था। उसके बाद जद (यू) साथ आया तो रालोसपा की नाराजगी बढ़ गई और आखिर में उसने भी साथ छोड़ दिया। जद (यू) भी नए फार्मूले पर भाजपा की छह संसदीय सीटें ले रहा है। कमजोर पड़ रही भाजपा के सामने लोजपा ने भी साथ छोड़ने की परोक्ष धमकी दे दी है। सूत्रों के अनुसार, भाजपा इस मामले पर रामविलास पासवान से बात करेगी, लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर लोजपा के अल्टीमेटम पर काम नहीं करेगी।

राज्यसभा सीट भी एक वजह
सूत्रों के अनुसार, लोजपा का दवाब राज्यसभा सीट के लिए ज्यादा है। वह अपने नेता रामविलास पासवान को राज्यसभा में लाना चाहती है। भले ही लोकसभा में उसे एक-दो सीट कम मिले। भाजपा फिलहाल इसके लिए तैयार नहीं है। चिराग पासवान का ट्वीट भी इसी दबाब का हिस्सा माना जा रहा है। हालांकि, भाजपा का कहना है कि सीटों के बंटवारे को लेकर इस तरह के बयान आते रहते हैं, कोई बड़ी समस्या नहीं है।

बदलता रहा है पासवान का रुख 
भाजपा अंदरूनी तौर पर लोजपा के रुख को लेकर सशंकित है। रामविलास पासवान माहौल देखकर पाला बदलते रहे हैं और 1996 के बाद एक बार (2009) को छोड़कर हर सरकार में मंत्री रहे हैं। चाहे वह भाजपा की हो, कांग्रेस की हो या तीसरे मोर्चे की। ऐसे में लोकसभा चुनावों से पहले तीन राज्यों की सरकारें गंवाने से भाजपा का पक्ष कमजोर पड़ रहा है। सहयोगी दल इसी का लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं। 

अकाली रहेगा साथ, शिवसेना पर संशय
भाजपा के अन्य सहयोगी दल भी दबाव की राजनीति कर रहे हैं। शिवसेना पहले से ही अलग चुनाव लड़ने की बात कहती रही है। महाराष्ट्र में इस बात की भी संभावना है कि राज्य सरकार में दोनों दल साथ रहते हुए भी लोकसभा चुनाव अलग-अलग लड़ें। दोनों दल उस स्थिति को स्वीकार करेंगे जिसमें दोनों को लाभ हो। अकाली दल को लेकर भाजपा निश्चिंत है। पंजाब में कांग्रेस सरकार होने के चलते वह भाजपा के साथ ही रहेगी। वैसे भी लोकसभा सीटों के मामले में अकाली दल भाजपा के मुकाबले ज्यादा फायदे में हैं।

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