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RGA News दिल्ली
लोकसभा चुनाव(Loksabha Elections 2019) को लेकर राम मंदिर आंदोलन(Ram mandir movement) में भले ही तेजी आई हो, लेकिन भाजपा(BJP) इस पर फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। मंदिर के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दबाव और उसके विपरीत सहयोगी दलों के तेवरों से जूझ रही सरकार की कोशिश है कि जो भी रास्ता बने वह अदालत से आए। यही वजह है कि भाजपा व सरकार के स्तर पर लगातार कहा जा रहा है कि कोर्ट तेजी से सुनवाई करे। सुनवाई शुरू होने पर सरकार पर बन रहा कानून बनाने का दबाव भी कम होगा।
तीन राज्यों में सरकारें गंवाने के बाद भाजपा की रणनीति का सबसे ज्यादा असर राम मंदिर के मुद्दे पर पड़ा है। विधानसभा के नतीजों के बाद विपक्षी खेमे में हो रही एकजुटता और राज्यवार गठबंधनों को देखते हुए भाजपा की भी निर्भरता सहयोगी दलों पर बढ़ रही है। बिहार में उसे लोजपा और जदयू की मांगों के सामने समझौता करना पड़ा है, वहीं महाराष्ट्र में शिवसेना के लगातार तीखे बोल के बावजूद वह अभी भी साथ चुनाव लड़ने की बात कह रही है।
संघ के साथ बैठक में भी हई चर्चा
जदयू और लोजपा साफ कर चुके हैं कि वे राम मंदिर मुद्दे पर अदालत व आम सहमति के रास्ते पर ही चलेंगे। साफ है कि वह कानून बनाने के विकल्प के खिलाफ हैं। जबकि संघ परिवार और विहिप अदालत में हो रही देरी के कारण कानून बनाने के लिए दबाव बना रही है। हाल में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की संघ के सर कार्यवाह सुरेश भैय्याजी जोशी के साछ मुलाकात में भी यह मुद्दा आया था। सूत्रों के अनुसार भाजपा ने संघ से आग्रह किया है कि वह इस मुद्दे पर साथ है, लेकिन संघ कानून बनाने के लिए दबाव न बनाए।
सामाजिक समीकरणों से ज्यादा लाभ
सूत्रों के अनुसार भाजपा नेता महसूस कर रहे है कि लोकसभा चुनावों में धार्मिक ध्रुवीकरण से ज्यादा असर समाजिक समीकरणों का होगा। बीते लोकसभा चुनाव व उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा को विकास व बदलाव के मुद्दे पर भारी सफलता मिली थी। हाल के तीन राज्यों के चुनाव में भी कांग्रेस केवल बदलाव के मुद्दे पर भाजपा पर भारी पड़ी है। पार्टी के एक प्रमुख नेता ने कहा है कि अगर जनवरी से सर्वोच्च अदालत में सुनवाई शुरू हो जाती है, तो सरकार को भी उसके फैसले का इंतजार करना पड़ेगा और संबंधित पक्ष भी इस बात को समझेंगे।