

RGA न्यूज़ गोरखपुर संवाददाता
गोरखपुर विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के प्रो. शांतनु रस्तोगी ने बताया कि इसरो से मिले प्रोजेक्ट एटमॉसफीयर रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें एथलोमीटर उपकरण से वायुमंडल में फैले ब्लैक कार्बन के आंकड़े पर शोध किया गया है। इसमें पाया गया है कि ठंड के शुरुआत में वायुमंडल में सबसे अधिक ब्लैक कार्बन के कण फैले मिले हैं।
गोरखपुर के वायुमंडल में ब्लैक कार्बन के कणों की संख्या बढ़ती जा रही है। सुबह-शाम इसकी अधिकता के चलते वायुमंडल में यह ब्लैक कार्बन ''काला जहर'' बनकर उड़ रहा है। खुली आंखों से यह दिखाई नहीं देता, मगर खामोशी से आपकी सेहत पर कहर बरपाता है।
पता तब लगता है जब आपको सांस और दमा की गंभीर बीमारी जकड़ लेती है। आंतों का संक्रमण आपकी सेहत को एकदम तहस नहस कर डालता है। इसलिए सुबह-शाम सजगता जरुरी है, वरना यह काला जहर सेहत झटका दे देगा।
ब्लैक कार्बन के बढ़ने की प्रमुख वजह गाड़ियों और जेनरेटर से निकलने वाला धुआं तो है ही, दूसरा पहलू पंजाब और दिल्ली में पराली के प्रदूषण का भी है। हवा के साथ वहां की पराली से फैले ब्लैक कार्बन के कण यहां तक आते हैं। ब्लैक कार्बन के कण सात से 15 दिन वायुमंडल में बने रहते हैं। ऐसे में घर से बाहर निकलने वाले लोगों को सावधानी बरतने की जरूरत है। खास तौर पर दमा और सांस के मरीजों को सतर्कता बरतनी चाहिए।
वायुमंडल में ब्लैक कार्बन बढ़ने का मामला गोरखपुर विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के शोध में सामने आया है। इसे एटमॉसफीयर रिचर्स जर्नल में प्रकाशित भी किया जा चुका है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की ओर से गोरखपुर विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग में एथलोमीटर नाम से एक उपकरण लगाया गया है। यह उपकरण वायुमंडल में ब्लैक कार्बन का पता लगाता है।
वाहनों से फैल रहा 60 फीसदी ब्लैक कार्बन
यह उपकरण वायुमंडल में फैले ब्लैक कार्बन का दो तरीके से अल्ट्रा वायलेट और इंफ्रा रेड के माध्यम से जांच करता है। अल्ट्रा वायलेट बॉयोमॉस यानी पराली और अन्य आग से निकले धुएं से वायुमंडल में फैले ब्लैक कार्बन की जांच करता है, जबकि इंफ्रा रेड के माध्यम से डीजल-पेट्रोल से निकलने वाले धुएं यानी वाहन और जेनरेटर का धुआं शामिल है। जांच से पता चला है कि वायुमंडल में फैले ब्लैक कार्बन में डीजल-पेट्रोल से 60 फीसदी और आग से निकले धुएं से 40 फीसदी कण शामिल हैं।
सुबह और शाम बढ़ जा रहे ब्लैक कार्बन के कण
उपकरण से प्राप्त आंकड़ों पर हुए शोध से पता चला है कि शहर में प्रतिदिन सुबह और शाम को वायुमंडल में ब्लैक कार्बन के कण बढ़ जा रहे हैं। ट्रैफिक की वजह से सुबह करीब 9 से 11 बजे तक वायुमंडल में इसके कण की संख्या 8 से 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पहुंच जा रही है। उसके बाद दिन में यह आंकड़ा औसत रह रहा है। फिर शाम को 7 से रात 11 बजे तक वायुमंडल में इसकी अधिकता रह रही है। शोधार्थी प्रयागराज सिंह ने बताया कि हिमालय से टकराकर हवा पश्चिम से पाकिस्तान, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा आगरा, गोरखपुर होते हुए पूरब की तरफ कोलकाता से बंगाल की खाड़ी में चला जाता है।