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मोदी सरकार में बिजली आपूर्ति में बड़े सुधार हुए हैं। विपक्ष के हाथों से बिजली का मुद्दा छिन सा गया है। यह पहला मौका है जब देश में बिजली की आपूर्ति और मांग का अंतर न्यूनतम है।...
नई दिल्ली: -दो वर्ष पहले एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में तत्कालीन बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने दैनिक जागरण को एक साक्षात्कार में कहा था कि उनकी सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि आने वाले दिनों में बिजली कभी चुनावों में मुद्दा नहीं बने।
गोयल के इस बयान की थोड़ी सी बानगी इस बार चुनावों में दिखने लगी है। वैसे इस बार यह मुद्दा बनता तो दिख रहा है, लेकिन इसकी वजह दूसरी है। पहले बिजली कटौती की विकराल समस्या, ज्यादा लोगों को बिजली कनेक्शन देने जैसे मुद्दे विपक्षी राजनीतिक दल उठाते थे। इस बार सत्ता पक्ष की तरफ से हर गांव ही नहीं हर घर तक बिजली पहुंचाने के साथ ही अधिकांश राज्यों में बिजली की स्थिति में भारी सुधार का भी दावा किया जा रहा है। पहले सत्ता पक्ष बिजली की स्थिति को जानबूझ कर छूने से कतराता था, लेकिन अब सत्ता पक्ष की तरफ से ही बिजली की स्थिति का बखान किया जा रहा है और विपक्षी दल इसे मुद्दा बनाने से बच रहे हैं।
संभवत: यह पहला मौका है जब देश में बिजली की आपूर्ति और मांग का अंतर न्यूनतम है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि जनवरी, 2019 में देश के 6 केंद्र शासित प्रदेशों और राज्यों में से 24 में बिजली की आपूर्ति और मांग एक फीसद से कम है। इसमें से 19 राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में कोई अंतर नहीं है यानी जितनी बिजली चाहिए उतनी दी जा रही है। उत्तरी क्षेत्र में बिजली की मांग और पूर्ति में अंतर महज 1.2 फीसद है, यानी मांग आपूर्ति से सिर्फ 1.2 फीसद कम है। पश्चिमी क्षेत्र में यह अंतर सिर्फ 0.4 फीसद, दक्षिणी क्षेत्र में मांग और आपूर्ति एक दम बराबर है, जबकि पूर्वी क्षेत्र में अंतर 0.6 फीसद का है।
हाल तक बिजली की किल्लत झेल रहे पूर्वोत्तर के राज्यों में भी मांग आपूर्ति से महज 0.9 फीसद ज्यादा है। अगर राज्य वार स्थिति का आकलन करें तो उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों में भी मांग के मुताबिक बिजली की आपूर्ति की जा रही है। जनवरी, 2019 में बिहार में अधिकतम मांग 4430 मेगावाट की थी और इतनी ही आपूर्ति की गई है। झारखंड इस क्षेत्र का ऐसा राज्य है, जहां बिजली की मांग अब भी पूरी नहीं हो पा रही है। वहां अंतर 9.5 फीसद का है। यानि मांग आपूर्ति से ज्यादा है।
असलियत में झारखंड से ज्यादा बिजली की दिक्कत सिर्फ एक राज्य जम्मू व कश्मीर में दिखाई देती है। जहां मांग आपूर्ति के मुकाबले 20 फीसद ज्यादा है। आपूर्ति की उपलब्धि को भाजपा ने मुद्दा बनाया है। जिस तरह से भाजपा की तरफ से हर गली-मुहल्ले में सौभाग्य बिजली योजना का प्रचार किया जा रहा है, उससे भी यह पता चलता है कि किस तरह से इस बार केंद्र सरकार की तरफ से बिजली को मुद्दा बनाया जा रहा है। बिजली मंत्रालय की तरफ से दिए गए आंकड़ों के मुताबिक देश के सभी घरों में बिजली पहुंच चुकी है।
सौभाग्य के तहत 2.47 करोड़ नए बिजली कनेक्शन दिए गए और आजादी के बाद पहली बार देश के सभी घरों में बिजली पहुंच गई। इसके पहले राजग सरकार ने 18 हजार ऐसे गांवों को भी बिजली से जोड़ा, जहां आजादी के बाद से अभी तक बिजली नहीं पहुंच पाई थी। पार्टी के बड़े नेता जब भी अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हैं तो हर घर को बिजली देने को सबसे प्रमुखता से उठा रहे हैं। ऐसे में अब इस बात की गुंजाइश कम ही है कि इस चुनाव के बाद के किसी भी चुनाव में ज्यादा से ज्यादा लोगों को बिजली कनेक्शन देने के मुद्दे को कोई भी राजनीतिक दल उठाने की कोशिश करेगा। असलियत में यह अब ‘नॉन इश्यू’हो गया है।