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ईपीएफओ को अब निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के पूरे अंतिम वेतन के हिसाब से ईपीएस पेंशन की गणना करनी होगी। इसके लिए कर्मचारी को कोई आवेदन देने की जरूरत नहीं होगी।...
नई दिल्ली:-केरल हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम फैसले के बाद ईपीएफओ को फरवरी में जारी अपना सर्कुलर वापस लेना होगा तथा जनवरी के सर्कुलर को बहाल करना होगा। इसमें क्षेत्रीय कार्यालयों को अंशदान बढ़ाने के इच्छुक कर्मचारियों के आवेदन स्वीकार करने और बढ़ी पेंशन देने का आदेश दिया गया था।
इसके अलावा, ईपीएफओ को अब निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के पूरे अंतिम वेतन के हिसाब से ईपीएस पेंशन की गणना करनी होगी। इसके लिए कर्मचारी को कोई आवेदन देने की जरूरत नहीं होगी। हालांकि यदि कोई कर्मचारी 8.33 से अधिक अंशदान देकर पेंशन में और वृद्धि चाहता है तो इसके लिए अवश्य उसे क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त के कार्यालय में आवेदन देना होगा।
जो कर्मचारी अभी नौकरी में हैं, उन्हें अंशदान बढ़वाने के लिए अपने नियोक्ता की सहमति से आवेदन देना होगा। परंतु सेवानिवृत्त कर्मचारी सीधे आवेदन दे सकते हैं। आवेदन में कर्मचारी को ये बात लिखकर देनी होगी कि वो अपना अंशदान बढ़वाना चाहता है।
ईपीएफ और ईपीएस के मौजूदा नियमों के मुताबिक कर्मचारी के वेतन में से 12 प्रतिशत ईपीएफ के लिए कटता है। इतना ही योगदान नियोक्ता को भी करना होता। नियोक्ता के योगदान का 8.33 प्रतिशत हिस्सा ईपीएस में जाता है। कर्मचारी का वेतन कितना भी हो लेकिन 2014 के संशोधन के अनुसार ईपीएस के लिए कटौती केवल 15,000 रुपये तक के वेतन पर होती है। इससे ईपीएस में अधिकतम अंशदान केवल 1250 रुपये महीने का होता है।
ईपीएस एक्ट में 1996 में हुए संशोधन और उस पर 2016 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार कर्मचारी चाहे अपने अंशदान को वेतन (मूल व महंगाई भत्ता समेत) के 8.33 प्रतिशत से बढ़वाकर अधिक पेंशन प्राप्त कर सकता है। हालांकि इससे नियोक्ता का अंशदान नहीं बढ़ता है। फिर भी कर्मचारी को अपना अंशदान बढ़वाने के लिए उसकी मंजूरी हासिल करनी होती है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार ईपीएफओ किसी भी कर्मचारी का अंशदान बढ़ाने का अनुरोध अस्वीकार नहीं कर सकता। यहां तक कि सेवानिवृत्त कर्मचारी भी अपना कुछ पीएफ ईपीएफओ को वापस देकर और 1996 या नियुक्ति की तारीख से अंशदान बढ़ाने का आवेदन देकर बढ़ी हुई पेंशन प्राप्त कर सकते हैं।
कैसे होती है पेंशन की गणना
मान लें कि आपने 1996 में नौकरी शुरू की। उस समय वेतन 6000 रुपये मासिक था। इसमें सालाना आठ प्रतिशत के हिसाब से वेतन वृद्धि हुई। आप 33 वर्ष बाद सेवानिवृत्त हुए तो आपका अंतिम वेतन लगभग 50 हजार रुपये होगा। और सालाना 8.5 प्रतिशत ब्याज के हिसाब से ईपीएस कोष में आपका कुल योगदान लगभग 12.93 लाख रुपये का हो चुका होगा।
इसके बावजूद चूंकि आपसे केवल 15,000 रुपये पर अंशदान लिया जाएगा लिहाजा आपको केवल 5,182 रुपये की मासिक पेंशन मिलेगी। यदि आप सेवानिवृत्ति के बाद 25 वर्ष जीते हैं तो इस हिसाब से ईपीएस से आपको केवल 1.52 प्रतिशत रिटर्न हासिल होगा। दूसरी ओर, यदि ईपीएस में आपका 8.33 प्रतिशत अंशदान पूरे वेतन से काटा जाए तो आपको 25 हजार रुपये की पेंशन के हिसाब से 11-12 प्रतिशत रिटर्न हासिल होगा।
-ईपीएस पेंशन 58 वर्ष की आयु से प्रारंभ होती है।
-नौकरी के दौरान कर्मचारी की मृत्यु की दशा में विधवा पत्नी को आजीवन अथवा दूसरी शादी तक पेंशन मिलेगी। इसके अलावा दो बच्चों को 25 प्रतिशत अतिरिक्त पेंशन का प्रावधान है।
-नौकरी के दौरान विकलांग होने पर कर्मचारी आजीवन पूरी पेंशन का हकदार है।
-कर्मचारी चाहे तो 50 वर्ष की आयु के बाद कभी भी पेंशन का दावा कर सकता है। परंतु 58 वर्ष की आयु तक उसकी पेंशन में हर साल 4 प्रतिशत की कमी होगी।